संस्कृत भाषा शिक्षण की विधियां अनुकरण विधि चित्र वर्णन विधि कहानी कथन विधि आगमन विधि निगमन विधि Exam 247

मध्यप्रदेश शिक्षक भर्ती परिक्षा सहित सभी शिक्षक भर्ती परीक्षाओं के लिए उपयोगी 

संस्कृत भाषा शिक्षण की विधियां  - 



अनुकरण विधि -  संस्कृत भाषा का अध्यापन कई विधियों के द्वारा किया जाता है। अनुकरण विधि का अपना महत्व है।  इसमें अध्यापक एक वर्ण , पद अथवा अवतरण को छात्रों के समक्ष पढ़ कर सुनाता है। बाद में छात्रों को तदानुसार दोहराना   होता  है।  यह दोहराना अनुकरण पर आधारित होता है।  संस्कृत भाषा के अध्यापन में अनुकरण  विधि का महत्वपूर्ण योगदान है। बच्चे अपने से बड़ों को जिन श्लोकों या सुभाषित मन्त्रों को पढ़ते हुए सुनते हैं उन्हें वे अनुकरण विधि द्वारा प्रायः कंठस्थ कर लेते हैं।  शिक्षक अपने छात्रों को प्रायः जो भी सीखना चाहता है , उसे वह छात्रों के सम्मुख कर के दिखाता है।  बाद में उसका अनुकरण करने को कहता है। 

चित्र वर्णन विधि - इस विधि में चित्र द्वारा शब्द और संस्कृत भाषा का ज्ञान कराया जाता है। यह विधि  वैज्ञानिक विधि है। यह छोटी कक्षाओं के लिए तथा अन्य भाषा भाषियों के लिए  उपयोगी है। चित्र वर्णन के द्वारा विद्यार्थियों के मस्तिष्क में स्थाई ज्ञान हो जाता है। यह विधि संस्कृत को प्रारम्भिक अवस्था में सीखने के लिए उपयोगी है। इस विधि में पहले वस्तु का चित्र दिखाया जाता है फिर उसका वर्णन किया जाता है। जैसे घर का चित्र दिखाकर विद्यार्थियों को प्रायः खिड़की , दरवाजा , छत , रसोईघर , आँगन , स्नानागार आदि को विस्तार से समझाया जाता है। 

कहानी कथन विधि - संस्कृत शिक्षण में कहानी कथन विधि का उपयोग अतीतकाल से होता आ रहा है।  उपनिषदों में इसके अनेक प्रमाण मिलते हैं। पंचतंत्र और हितोपदेश नाम के ग्रन्थ इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। इसमें संस्कृत शिक्षक सर्वप्रथम कक्षा के मानसिक स्तर के अनुकूल किसी कहानी को छात्रों को सुनाने के लिए चुनता है। शिक्षक स्वाभाविक ढंग से कहानी को सुनाता है। कहानी को प्रभावपूर्ण तथा रोचक बनाने के लिए वह यथा स्थान सहायक सामग्री का भी उपयोग करता है। इससे कहानी की विषयवस्तु रोचक हो जाती है।  और छात्र उसमे विशेष रूचि लेते हैं। इससे छात्र विषय वस्तु को सरलता से समझ लेते हैं।  अंत में शिक्षक छात्रों के अर्जित  ज्ञान की जाँच हेतु कुछ प्रश्न भी पूछ लेता है , इससे छात्रों को विषय वस्तु का समुचित ज्ञान हो जाता है। 

आगमन विधि - संस्कृत शिक्षण हेतु आगमन विधि बहुत ही उपयुक्त है। जोसेफ लेण्डेन के शब्दों  में - " जब कभी बालकों के समक्ष बहुत से तथ्य , उदहारण या वस्तुएं प्रस्तुत करते हैं और फिर उनसे स्वयं के निष्कर्ष निकलवाने का प्रयास करते हैं तब हम शिक्षण विधि का प्रयोग करते हैं। 
    आगमन विधि में निम्न सूत्रों का प्रयोग किया जाता है - 
1. ज्ञात से अज्ञात की ओर 
2. विशिष्ट से सामान्य की  ओर 
3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर 

आगमन विधि के निम्नलिखित चार चरण होते हैं - 
1. उदाहरण - छात्रों के समक्ष एक ही प्रकार के कई सारे उदाहरण प्रस्तुत किये जाते हैं। 

2. निरीक्षण - इसमें छात्रों से उदाहरणों का विश्लेषण , तुलना आदि के द्वारा निरीक्षण करके किसी निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास किया जाता है। 

3. सामान्यीकरण - छात्र उदाहरणों के आधार पर किसी सामान्य नियम का निर्धारण करते हैं। 

4. परीक्षण - अंत में छात्र अन्य उदाहरणों की सहायता से निकाले गए नियम का सत्यापन कर पुष्टि करते हैं की यह नियम सभी में लागू होता है या नहीं। 

निगमन विधि - निगमन विधि द्वारा शिक्षण में पहले परिभाषा या नियम सिखाया जाता है , तत्पश्चात उसके अर्थ का सावधानी से स्पष्टीकरण किया जाता है और अंत में तथ्यों का प्रयोग करके उसे पूर्णतः स्पष्ट किया जाता है। 
निगमन विधि , आगमन विधि के ठीक विपरीत है।  इसमें मुख्यतः तीन शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता है -
1. सूक्ष्म से स्थूल की ओर 
2. सामान्य से विशिष्ट की ओर 
3. नियम से उदाहरण की ओर 

निगमन विधि के निम्नलिखित चरण होते हैं - 
1. नियम या सिद्धांत का प्रस्तुतीकरण 
2. प्रयोग या उदाहरण 
3. निष्कर्ष 
4. परीक्षण 


 यह लेख आपको कैसा लगा और आपके लिए कितना उपयोगी रहा कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं। 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ